40 वर्ष की आयु में स्वस्थ गर्भधारण करना
ओमान निवासी जोड़े ने नोवा IVF फर्टीलिटी, मुम्बई में अपने IVF – उपचार हेतू सम्पर्क किया. पति की आयु 33 वर्ष, जब कि पत्नी 40 वर्ष की थी. नोवा आने से पूर्व, पत्नी का निदान गर्भाशय फाइब्रॉएड के रूप में किया गया और ओमान में वर्ष 2014 में उसकी लेप्रोटॉमी हटाने के लिए लेप्रोटॉमी की गई थी. उसके बाद, दम्पति ने मार्च 2015 में संसर्ग किया परन्तु दुर्भाग्यवश, 12 सप्ताह तक गर्भाधान का किसी भी प्रकार का कार्डिक गतिविधि दिखाई नहीं दी और मिस्ड गर्भपात का निदान किया गया.
मिस्ड गर्भपात के दौरान, महिला को स्खलन का पता नहीं चलता है क्योंकि योनि रक्तस्राव अथवा पेट में दर्द के लक्षण जो सामान्यतया मिसकेरीज (गर्भस्राव) या गर्भपात में दिखाई देते हैं, कभी दिखाई नहीं देते हैं. यह त्रासदिक क्षति एक परिवार की शुरूआत करने के उनके सपने को तोड़ देती है.
नोवा IVF फर्टीलिटी इसका उपचार प्रदान करता है
दूसरे अधिकांश दम्पतियों की तरह, अपना बच्चा होने की आशा और आकांक्षा अधिक थी, और दम्पति ने नोवा IVF फर्टीलिटी, मुम्बई के विशेषज्ञ से परामर्श लेने का निर्णय लिया. नोवा के फर्टीलिटी परामर्शदाता दम्पति के विभिन्न टेस्ट किए और निष्कर्ष निकाला कि 40 वर्ष की बड़ी आयु में भी, पत्नी के ओवरी रिजर्व अच्छे थे. उच्च रक्तचाप के बावजूद, दूसरे सभी पेरामीटर्स नियंत्रण में थे. इसने दम्पति को उपचार के बारे में और अधिक सकारात्मक और आशावान बना दिया.
उसके रक्तचाप को नियंत्रण में रखते हुए, नोवा के विशेषज्ञ ने एन्यूपलोइडी स्क्रिनिंग की (PGT—A) के लिए प्रिइमप्लांटेशन जेनरिक टेस्टिंग के साथ सेल्फ-साइकिल इंट्रासाटोप्लस्मिक स्पर्म इंजेक्शन (ICSI) देना शुरू किया. उसके खुद के डिम्बाणुजनकोशिका (oocyte) का इस्तेमाल करते हुए, वे 6 एम्ब्रायोज लेने में सफल हो सके, जिन्हें एम्ब्रायोनिक ग्रोथ के 3रे दिन बायोप्सी के लिए भेज दिया गया. 5वें दिन परिणाम के अनुसार, 6 में से 2 एम्ब्रायोज में क्रोमोसोमल असामान्यता नहीं पाई गई.
इन 2 एम्ब्रायोज को यूट्रस में ट्रांसफर कर दिया गया. एम्बायो ट्रांसफर के 10 दिन बाद, उसके बीटा hCG टेस्ट सकारात्मक था और नौ महीने बाद, दिसम्बर 2017 में, दम्पति को एक स्वस्थ शिशु का सौभाग्य प्राप्त हुआ.
40वर्ष के बाद महिलाओं में गर्भाधान
महिलाओं की उनकी 40वें वर्ष में गर्भाधान की दर युवा महिलाओं की तुलना में उल्लेखनीय रूप से कम है. अधिकांश इम्प्लांटेशन विफलता, अथवा मिसकैरीज, एम्ब्रायोज में क्रोमोसोमल असामान्यता के कारण होता है. मातृत्व आयु के बढ़ने के साथ, क्रोमोसोमल असामान्यताओं की संभावनाएं, भी बढ़ जाती हैं. ये असामान्यताएं 40वें वर्ष में 80% महिलाओं में सामान्यरूप से पाई जाती हैं.
प्रिइम्प्लांटेशन जेनेरिक टेस्टिंग (पीजीटी) जेनेटिक रोगों का स्क्रिनिंग टेस्ट है जो IVF प्रक्रिया के परिणामास्वरूप उत्पन्न एम्ब्रोयोज(भ्रूण) पर होते हैं. एन्यूप्लोइडी की जाँच का प्रमुख उद्देश्य श्रेष्ट एम्ब्रायोज का चयन करना है जिससे सफल गर्भाधान के अवसर बढ़ जाते हैं.
प्रिइम्प्लांटेशन जेनेटिक टेस्टिंग के प्रकार
पीजीटी को 3 उपप्रकारों में विभाजित किया जाता है – एन्यूप्लोइडी अथवा पीजीटी-ए के लिए पीजूटी, मोनोजेनिक / सिंगल जीन डिसओर्डर के लिए पीजीटी अथवा क्रोमोसोम स्ट्र्क्चरल रीएरेन्जमेंट के लिए पीजीटी-एम अथवा पीजीटी-एसआर.
- पीजीटी-ए एम्ब्रायोज (भ्रूण) पर की गई एक जाँच है, ताकि क्रोमोसोमल असामान्यताओं यथा अतिरिक्त अथवा मिसिंग क्रोमोसोम को ढूँढा जा सके.
- पीजीटी-एम जन्म लेनेवाले बच्चे में जन्मजाता डिसऑर्डर की जोखिम को दूर कर देता है जो एकल जीन म्यूटेशन के कारण होते हैं. सिस्टिक फाइब्रोसिस, हंटीगटन रोग, इत्यादि एकल जीन म्यूटेशन के कारण होनेवाले डिसआर्डर के उदाहरण हैं, जिसे मोनोजेनेटिक विकार (डिसआर्डर्स) के नाम से भी जाना जाता है.
- पीजीटी-एसआर एम्ब्रायो को सही अथवा संतुलित जेनेटिक मटेरियल की मात्रा के लिए स्क्रीन करती है. पीजीटी-एसआर की सहायता से, केवल उन्हीं एम्ब्रोयज को ट्रांसफर किया जाता है जिसमें संतुलित क्रोमोसोमल कंटेन होते हैं.
प्रिइम्प्लांटेशन जेनेटिक टेस्टिंग (पीजीटी) कैसे की जाती है?
प्रिइम्प्लांटेशन जेनेटिक टेस्टिंग के दौरान, IVF प्रक्रिया के माध्यम से निर्मित एम्ब्रोयोज (भ्रूण) को बायोप्सी के लिए भिजवाया जाता है. इस प्रक्रिया में, विस्तृत विश्लेषण के लिए, बायोप्सी एम्ब्रायो कल्चर के 3 दिन / 5 दिन स्टेज के विकास से ली जाती है. कुछ कोशिकाएँ एम्ब्रायोज सावधानीपूर्वक ट्रोफेक्टोडर्म अथवा प्रि-प्लेसेंटा से निकाल कर विस्तृत विश्लेषण के लिए प्रयोगशाला में भेजी जाती है.
विशेषज्ञों ने, तब इन सेम्पलों का परीक्षण किया और उनके जेनेटिक मटेरियल अथवा क्रोमोसोम्स को चेक किया. एम्ब्रायोज जिनमें क्रोमोसोम्स की संख्या गलत होती है व्यर्थ गर्भाधान उत्पन्न करती है. विशेषज्ञ सही संख्या के क्रोमोसोम के साथ अच्छी किस्म के एम्ब्रोज का चयन करते हैं और माता के यूट्रस में ट्रांसफर करते हैं. परिणाम सामान्यतया बायोप्सी के 7 – 10 दिन में उपलब्ध हो जाता है.
एनियूप्लोइडी के लिए प्रिइम्प्लांटेशन जेनेटिक टेस्टिंग
पीजीटी-ए अक्सर तीन श्रेणियों में पाया जाता है, यथा यूप्लोइड, एन्यूप्लोइड, अथवा मोसाइक.
- यूप्लोइड – अक्सर प्रति पेरेन्टस 23 जोड़े क्रोमोसोम्स एक व्यक्ति में होते हैं. एम्ब्रायोज से यूप्लोइड तब बनते हैं जब प्रति कोशिका क्रोमोसोम्स सामान्य अर्थात 46 क्रोमोसोम्सहों. यूप्लोइड एम्बोयोज में गर्भाधान की संभावना अधिक होती है.
- एन्यूप्लोइड प्रति कोशिका की संख्या असामान्य होने पर होता है. यदि कोशिकाओं में अतिरिक्त क्रोमोसोम होते हैं, उसे ट्राइसोमी के नाम से जाना जाता है. मोनोसोमी एक ऐसी अवस्था होती है जब कोशिका में क्रोमोसोम नदारद होता है. गर्भाधान की संभावना की सफलता एन्यूप्लोइड एम्ब्रायोज में कम होती है. इम्प्लांटेशन की विफलता, मिसकेरीज एवं जन्मजात विकृतियों का बहुत सामान्य कारण एन्यूप्लोइडी हैं.
- मोसाइक एम्ब्रियो सामान्य तथा असामान्य क्रोमोसोम्स संख्यावाले हो सकते हैं. सफल गर्भाधान की संभावनाएं कम हो सकती है पर संभावना रहती है. जब बायोप्सी के बाद कोई यूप्लोइड एम्ब्रियोज उपलब्ध न हों, केवल उसी स्थिति में मोसाइक एम्ब्रियोज यूट्राइन ट्रांसफर एम्ब्रियोज न्यून मोसाइक कहलाताहै. मोसाइक एम्बियो के बारे में दम्पति से विचार-विमर्श के बाद ही ट्रांसफर किया जाता है.
एन्यूप्लोइडी (पीजीटी-ए) के लिए प्रिइम्प्लांटेशन जेनेटिक टेस्टिंग न केवल मिसकेरेज की जोखिम को कम करने में सहायता करता है वरन् जेनेटिक दशाओं को भी खोज निकालता है जैसे ट्राइसोमी 21 अथवा डाउन्ससिन्ड्रोम तथा ट्राइसोमी 18 अथवा एडवर्ड्स सिन्ड्रोम.
- डाउन्स सिंड्रोम / ट्राइसोमी 21 के लक्षणों में फ्लेट फेसियल फिचर्स, डिलेड डेवलपमेंट, पूअर मसल्स टोन, सोर्ट नेक, सोर्ट स्टेचर, बलगिंग टंग आदि सम्मिलित है.
- एडवर्ड सिंड्रोम / ट्राइसोमी 18 के लक्षणों में लो बर्थ वेट, स्माल जा एव मुँह, क्लेफ्ट लिप एवं पलेट, एक अथवा दोनों टेस्टीज, असाधारण आकार का सिर आदि सम्मिलित हैं.
प्रिइंप्लांटेशन जेनरिक टेस्टिंग के साथ, एन्यूप्लोइडीअपने बच्चों में स्थानांतरित होने की जोखिम से बचा सकता है. अधिक मातृत्व आयु के दम्पति, एन्यूप्लोइडी के साथ पूर्व गर्भधारित, लगातार मिस केरीज, विफल एम्ब्रियो इंप्लांटेशन, अस्पष्ट बांझपन अथवा बहु विफल बांझपन उपचार, इन जाँचों के लिए किए जा सकते हैं.
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