टेस्ट ट्यूब बेबी क्या है?
आज के दौर में विज्ञान ने इतनी प्रगति कर ली है कि पहले जो काम भगवान के भरोसे माना जाता था, उसे अब विज्ञान और नई तकनीकों ने ज़मीन पर संभव कर दिखाया है. इसी तरह विज्ञान ने आज यह संभव कर दिखाया है कि जिन्हें संतान का सुख पहले संभव नहीं था, अब उन्हें भी विज्ञान की मदद से संतान हो सकते हैं. इसी तरह की तकनीक है टेस्ट ट्यूब बेबी.
टेस्ट ट्यूब बेबी के बारे में आपने जरूर सुना होगा! अगर नहीं तो आइये, इस लेख में हम बताएंगे कि टेस्ट ट्यूब बेबी क्या है.
सबसे पहले यह जानना ज़रूरी है कि किसी दम्पति को बच्चा किन वजहों से नहीं होता है. महिलाओं में बच्चेदानी में होने वाली समस्याआएं बेहद आम हैं. इसके अलावा इनके ओवूलेशन में भी दिक्कत होती है. यह भी होता है कि उनके फैलोपियन ट्यूब में ब्लॉकेज हो या फिर गर्भाषय समस्याग्रस्त हो. ये तो हुई महिलाओं से जुडी समस्याएं, इनके साथ कुछ पुरुषों में भी बांझपन की समस्या होती है. पुरुषों में स्पर्म काउंट की समस्या भी आम ही होती है.
ऐसी कोई भी दम्पति, जिनमें ऊपर ज़िक्र की गई कोई भी समस्या हो, वह टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक का सहारा लेकर बच्चे पैदा कर सकते हैं.
आइये अब जानते हैं कि टेस्ट ट्यूब बेबी होता कैसे है. इसकी प्रक्रिया कुछ यूं होती है कि इसमें महिला, जो माँ बनना चाहती है, उसके गर्भाषय से अंडा बाहर निकाल लिया जाता है और इसे पुरुष के शुक्राणु के साथ बाहर फ़र्टिलाइज़ किया जाता है. बाद में यह महिला के युटेरस में पुनः स्थापित कर दिया जाता है. महिला के अंडे को जब पुरुष के शुक्राणु के साथ बाहर बेहद सावधानी से फ़र्टिलाइज़ किया जाता है तो यह भ्रूण में तब्दील हो जाता है. इसे महिला के युटेरस में स्थानंतरित करने के 9 महीने बाद संसार में एक स्वस्थ बच्चे का आगमन होता है.
इस तकनीक की लोकप्रियता का यह आलम है कि अब तक दुनिया में तकरीबन 50 लाख से ज़्यादा परिवार टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक के माध्यम से संतान की उत्पत्ति कर चुके हैं. कई प्रसिद्ध लोग भी संतान के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं और प्रसन्न हैं. टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक की मदद से जन्म लेने वाली सबसे पहली बच्ची का नाम लूसी ब्राउन है.
अब आपको टेस्ट ट्यूब बेबी बनाने की पूरी प्रक्रिया से रूबरू करवाते हैं.
टेस्ट ट्यूब बेबी के लिए सबसे पहले महिला को ओवेरियन स्टिम्युलेशन के लिए इंजेक्शन दिए जाते हैं. ऐसा इसीलिए किया जाता है ताकि महिला अधिक से अधिक अंडे विकसित कर सके.
इसके बाद चिकित्सक महिला के गर्भआशय से अंडा बाहर निकाल लेते हैं. महिला के अंडाशय से अंडे निकाल कर इसे पुरुष के स्पर्म के साथ रख दिया जाता है ताकि शुक्राणु अंडे को निषेचित कर सके, हालांकि कई बार इंजेक्शन द्वारा स्पर्म को अंडे के अंदर डाला जाता है, यह प्रक्रिया इनसेमिनेशन कही जाती है.
जब अंडा पूरी तरह से फर्टिलाइज हो जाता है तो वह भ्रूण में बदल जाता है.
फिर भ्रूण को महिला के गर्भाषय में ट्रांसफर किया जाता है. उससे पहले सबसे अच्छे भ्रूण की जांच करके डॉक्टर और महिला और उसके पति से विचार किया जाता है, सबकी सहमति ली जाती है. यदि कोई एक भी भ्रूण पूरी तरह से मजबूत नहीं है तो एक से अधिक भ्रूण महिला यूटेरस में डाले जाते है.
जैसे ही भ्रूण गर्भाशय में प्रत्यारोपित हो जाता है, वह बच्चे के रूप में बनने के लिए आकार और वजन में बढ़ने लगता है। टेस्ट ट्यूब बेबी को लेकर कई तरह की भ्रान्ति भी समाज में फैली हुई है कि बच्चा स्वस्थ पैदा नहीं होता. यह बात पूरी तरह से गलत है. टेस्ट ट्यूब बेबी की प्रक्रिया में मजबूत अंडे और भ्रूण का इस्तेमाल होता है और बच्चे स्वस्थ ही पैदा होते हैं.
एक और भ्रान्ति यह है टेस्ट ट्यूब बेबी बहुत महंगे पड़ जाते हैं. यह धारणा भी सही नहीं है. विज्ञान के इतना उन्नत हो जाने के बाद टेस्ट ट्यूब बेबी अब एक लाख से डेढ़ लाख तक में हो जाते हैं और आज के लिहाज से यह कोई बहुत बड़ी रकम नहीं है.
खास बात यह है कि भारतीय परिवारों में भी टेस्ट ट्यूब बेबी का चलन बढ़ रहा है. जो पुरानी सोच के लोग थे, वो भी अब इस तकनीक के सहारे माता पिता बनने का सुख भोग रहे हैं.
अब पूरे भारत में ऐसे कई बेहतर अस्पताल और आइवीएफ तकनीक से लैस जगहें हैं, जहाँ निश्चिंत होकर टेस्ट ट्यूब बेबी पाया जा सकता है.
टेस्ट ट्यूब बेबी के प्रति भारतीय समाज की धारणा भी बदल रही है. अब लोग विज्ञान की शरण में जा रहे हैं और अपनी कमी कमजोरीयों के बावजूद माता और पिता बनने में सक्षम हैं.